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श्रावणी मेला कुशेश्वरस्थान में चार सौ वर्षों से है जलाभिषेक की परंपरा कुशेश्वरस्थान

श्रावणी मेला

कुशेश्वरस्थान में चार सौ वर्षों से है जलाभिषेक की परंपरा कुशेश्वरस्थान,

कुशेश्वरधाम को मिथिला का बाबाधाम कहा जाता सावन में यहां श्रद्धालुओं की भारी जुटती है।

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कुशेश्वरस्थान में चार सौ वर्षों से है जलाभिषेक की परंपरा कुशेश्वरस्थान


जानकार बताते हैं कि यहां करीब चार सौ वर्षों से जलाभिषेक की परंपरा है । पिछले दो वर्षों से कोरोना पाबंदियों के कारण लोग सावन में बाबा का जलाभिषेक नहीं कर पाए लेकिन इस पर जबरदस्त उत्साह है । बड़ी संख्या में बद्धालुओं ने कांवर यात्रा की योजना बनाकर उसके लिए तैयारी शुरू कर दी है । शिवभक्त सिमरिया और सुल्तानगंज से गंगाजल लाकर बाया कुशेश्वरनाथ पर अर्पण करते हैं । सिमरिया घाट से कुशेश्वर धाम की दूरी 108 किमी है जबकि सुल्तानगंज से यह दूरी करीब 200 किमी है । अधिकतर बद्धालु सिमरिया घाट से ही गंगाजल लाना पसंद करते है । सिमरिया घाट से कुशेश्वर धाम तक के सफर में बरौनी , मेघौल , बेगूसराय , मंझौल , गढ़पुरा , हसनपुर , झझड़ा व कुशेश्वरस्थान कुल आठ पड़ाव हैं । यहां कांवरिये विश्राम करते हैं और अगली सुबह पुनः कांवर लेकर मंजिल की ओर रवाना हो जाते है । सिमरिया से कुशेश्वर धाम तक का सफर अमूमन चार से पांच दिनों में पूरा होता है लेकिन इस पथ पर कांवरियों के ठहरने के लिए कोई व्यवस्था नहीं रहती है । चिकित्सा शिविर , डॉक्टरों की तैनाती , सुरक्षा व्यवस्था आदि नहीं होने से श्रद्धालुओं को दिक्कत होती है । सावन की पहली व अंतिम सोमवारी को कुशेश्वरनाथ को जलाभिषेक के लिए कांवरियों की भीड़ लगती है । पहली सोमवारी को करीब 25 हजार और अंतिम सोमवारी को एक लाख से अधिक शिवभक्त यहां जुटते हैं । बीच के दिनों में 10 से 15 हजार लोग रोज बाबा को जलार्पण करते हैं । दरभंगा मधुबनी बेगूसराय खगड़िया , सहरसा व नेपाल सहित आसपास से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां हर साल जलाभिषेक के लिए आते हैं । दरभंगा , मधुबनी , बेगूसराय खगड़िया , सहरसा व नेपाल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां हर साल जलाभिषेक के लिए आते हैं।

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