भारतीय गाँवों में खेत-खलिहान का काम सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाएँ भी इसमें बराबरी से योगदान देती हैं। तस्वीरों में दिख रही महिलाएँ गाँव के पारंपरिक कार्य—भूसा, पराली और फसल अवशेष को समेटने—का बेहद कठिन और मेहनती काम करते हुए दिखाई देती हैं।
यह काम न केवल शारीरिक क्षमता माँगता है, बल्कि धैर्य, अनुभव और लगातार लगने वाले समय की भी आवश्यकता होती है। ग्रामीण महिलाओं की इसी मेहनत के कारण घरों में चारा, ईंधन और पशुपालन संबंधी आवश्यकताएँ पूरी हो पाती हैं।
ग्रामीण महिलाओं के इस काम की खास बातें
- भूसा/पराली को हाथ से समेटना
जिससे गाय और भैंसों के लिए चारा तैयार किया जाता है।
- धूप और मिट्टी में लंबे समय तक काम
क्योंकि ग्रामीण महिलाओं का दिन खेतों और घर दोनों में बीत जाता है।
- खेत की सफाई और भविष्य की खेती की तैयारी
पराली हटाने के बाद ही अगली फसल की बुआई की जाती है।
- ग्रामीण जीवन का असली संघर्ष
ये मेहनत अक्सर अनदेखी रह जाती है, इसलिए ऐसी तस्वीरें ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को उजागर करती हैं।
ग्रामीण महिलाओं की मेहनत क्यों महत्वपूर्ण है?
ग्रामीण महिलाओं पर परिवार, खेत और पशुओं की जिम्मेदारी साथ-साथ होती है। उनकी मेहनत ही गाँव की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। खेत-खलिहान में उनका योगदान भारतीय कृषि परंपरा का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसे अक्सर पर्याप्त मान्यता नहीं मिलती।


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